Wednesday, July 22, 2020

नताशा की कविताएँ

                            नताशा की कविताएँ 

                                                                                    -अरुणाभ सौरभ
नताशा उस सांस्कृतिक भूमि से हिंदी कविता में आती है जिसकी उर्वरा शक्ति विद्यापति से लेकर रेणु,नागार्जुन और राजकमल चौधरी और न जाने कितने लोगों ने विकसित की है । नताशा की कविताएँ उस युवा पीढी की आवाज़ है जिसके सपनेमूल्य और संवेदना को यह व्यवस्था और तंत्र निरंतर तोड रहा है। उस टूट के खिलाफ़ ये कविताएँ बचाने का आग्रह है । जीवन और जीवन की सुंदरता इन कविताओं के बीच से झलकता है जिसमें यह स्त्री कवि अपने लोगअपनी दुनिया और अपने पात्रों से नियमित संवाद करती है । जिस संवाद में उस सब कुछ को बचाने की चेष्टा है जिससे यह दुनिया इतनी सुंदर है । बचाना जीवन कोजीवन की  प्राथमिकताओं को और अपनी प्रतिबद्धता को बचाना कवि धर्म है यहाँ !
             एक तरफ लोक रस के परिपाक से ये कविताएं तैयार हुईं हैं । ये कविताएं लोकजीवन की उन छिपी हुई गहरी सम्वेदनाओं से हमें जोडती हैं जो हिंदी कविता की विरासत है । नताशा उन कवियों की परम्परा का विस्तार करती हैं जिनसे हिंदी कविता की परम्परा की स्वाभाविक निर्मिति हुई है। दूसरी तरफ शहरी मध्यवर्ग की जटिलताओं की मानसिकता से हमें सीधे जोडतीं हैं। भोगे हुए जीवन को कविताई का स्वरुप और गुणधर्म प्रदान करने की पूरी चेष्टा यहाँ दीखती है । मनुष्य और प्रकृति के बीच सार्थक अंतर्संबंध और पारिस्थितिक अनुकूलनता का विस्तार यहाँ है। कहीं-कहीं वैज्ञानिक दर्शन की क्लासिकल परिणति कविताओं में हुई  है जिसकी फैंटेसी  में हर तरह से जीवन के सौंदर्यबोध में डूब जाना सहज आकांक्षा  बन जाती है । भावों की उतप्त गहराइयों में उतरने की कोई अतिरिक्त चेष्टा नहीं है ,बल्कि जटिल से जटिलतम परिस्थितियों  में अपनी पक्षधरता तय कर लेना कवि  की प्राथमिकता है । जिसके लिए छोटी से छोटी चीज़ें,आस-पास की बनती-बिगड़ती चीज़ें कविताई का हिस्सा बन जाती है। 
         यहाँ शिमला में सांझ का चित्र हैपाट्लिपुत्र का अगम कुँआ है,अशोक राजपथ हैमोहना तट की मत्स्यगंधाएँ हैंगंगा आरती है,अनसुनी कहासुनी है,नींद हैप्रेम की गुज़ारिश हैगृहस्थ प्रेम का समूचा कोलाज है और विध्वंश और निर्माण भी । कई एकांत के सहचर मिलकर इन कविताओं में बतियाते हैं । साथ ही हर तरह के डर का प्रतिकार है यहाँ जिसमें आत्महत्या को मौन विद्रोह माना गया है । जीवन और आस्था का विरोधाभास जहाँ चट्टानों में सर धुनने सा है और खुश रहने के लिए कवि कर्म भी ।  नताशा प्रेम की भाषा रचती है जिसमें एक लडकी के प्रेम का अंतहीन सफर है आकर्षण की हद तक । इस प्रेम में देह की अनिवार्यता है वायवीय और आभासी प्रेम जैसा कुछ यहाँ नहीं दीखता।  नताशा का प्रेम एकरेखीय ना होकर बहुकोणीय है जिसमें चुम्बकत्त्व भी है और घुलनशील सांद्रण भी जिसमें हर पतझड के बाद वसंत आता है । सीने के पर्वत पर जो उँचाईया प्रेमी ने हासिल की वहीं से प्रेमिका का ढहना और निढाल होना पृथ्वी की भाँति यह स्त्री कवि देखती है ।
            हिंदी में ऐसे कम युवा कवि हैं जिनमें लोकजीवन और नागरबोध एक साथ कहकहे लगाता हो और बोध के स्तर का विस्तार इतना गहरा हो । हिंदी कविता में इनका प्रवेश कविता की भाव भूमि और रस भूमि के लिहाज से अत्यंत सुखद है । इन कविताओं को किसी एक  खांचे,खोमचे में वर्गीकृत करने के बजाय अपने समयऔर समय की बेचैनी और छटपटाहट से चीन्हने की जरूरत है । इनकी कविताओं में जितनी विशेषताएं हैं उतनी सघनता भी , मानुस की मानसिक तैयारी भी  इसलिए इनकी कविताओं में सहजता का सूत्र देखने को मिलता है उतनी ही सरलता भी  कहीं से भी कोई आयातित या ओढी हुई भावुकता उनमें नहीं दीखतीअपनी पूरी सहज ज़िंदगी और कविताई से भरपूर होकर जीने की आदि हैं- नताशा! एक ज़िम्मेदार बुद्धिजीवी की भांति नताशा अपनी कविताओं में आस-पास के जीवन के साथ सघनता के साथ जुडी नज़र आती हैं । अकारण घनुष तानने की प्रवृत्ति इनके यहाँ नहीं दीखती हैबिना ऊंचे सुर में,लफ्फाज़ी और बयानबाज़ी से मुक्त कवि की दुनिया बिल्कुल विरल है ।
           अभिव्यक्ति कौशल से भरपूर नताशा की कविताओं से गुजरना समकालीन हिन्दी कविता की धारदार दुनिया में कदम रखना है। नताशा अंत्यन्त सहजता और धैर्य के साथ रचनाकर्म कर रही हैं।कहना ना होगा कि हमारे दौर में एक सैलेंट वर्कर कवि,जिनकी कवितायें बोलती हैं कवि नहीं। एक जीवन,एक मौसम,एक राग,और कविताओं के निमित्त एक वायुमंडल के मिजाज़ को टोहना जहां जरूरी काम है। सहजता के साथ जीए हुए स्त्री जीवन का जीवनानुभव,संबंध नताशा की कविताओं में उपस्थित हुआ है ।
                  मानुस जीवन यहाँ उपस्थित है जिससे मनुष्य केवल कुछ पाने की ही आशा पर चलने वाला प्राणी होगा तो वह सिर्फ़ असहाय होगा । जब वह जीवन को कुछ दे सकने वाला  मनुष्य होगा तभी जीवन की समर्थता को समझेगा। फिर यह चिन्ता सहसा व्यर्थ हो जाएगी कि जीवन कितना असार है-उसकी मुख्य चिन्ता यह होगी कि वह जीवन को कितना सारपूर्ण बना सकता है। मुक्तिबोध की इन पंक्तियों की तरह- ''अब तलक क्या किया जीवन क्या जीया''  इन कविताओं में जीवन में जीए हुए लय-सुर-ताल हैं ,तो खेल भी ,गति हैं  तो विराम भी,उम्मीद है तो संघर्ष भी । कविताओं के अंदर कभी भावों सरलीकरण हो जाता है पर कहीं अर्थ दोष नहीं उत्पन्न होता है।  कम सुखद नहीं है की यह युवा स्त्री कवि जीवन के हर खानों पर कविता बुनना जानती है,जिसमें गिनती के बाहर भी न जाने कितनी  विखरी हुई और जानी-अनजानी दुनिया है, संवेदना है । व्यवस्थित जीवन भी यहाँ  है और पूरी चेतना में शामिल अनगढ़पन  का सौंदर्य भी । यहाँ कवितायें भावुकता की रोमानी कल्पनाओं से नही,यथार्थ की सहज चेतना से गढ़ी जाती है । इसीलिए इस यथार्थ में शिल्प का अनगढ़पन मिलना स्वाभाविक भी है और क्रिया प्रसूत भी! इन सबके केंद्र में लड़की का होने की तल्ख सच्चाईओं से कविता गढ़ने की पूरी कला नताशा के पास है। इसीलिए नताशा उन बहुत कम बचे हुए लोगों को अपनी कविता में शामिल करतीं हैंजिनके पास यथार्थ के स्तर पर जीवटता और उम्मीद के स्तर पर रोशनी की आखिरी किरण मौजूद है । बेबाक किंतु गम्भीर स्त्री कवि होने की पूरी सम्भावना को अपनी कविताओं में व्यक्त करतीं हैं-नताशा ।
             नताशा के पास कोई हाहाकारी भाषा नहीं है न कोई लाउड स्वर । साफ-सुथरी और आसान सी भाषा की कवयित्री है- नताशा! कहन में नयापन संस्कृति बोध से उत्पन्न हुए रचनात्मक ऊर्जा को आत्मसात करने से आया है। सहज बिम्बों का प्रयोग और सहज प्रतीक योजना से इन कविताओं की निर्मिति हुई है  जिनकी दुनिया आकार-प्रकार में भले छोटी हो पर उस दुनिया के प्रति ये कविताएँ साकांक्ष है। नताशा के पास युवा मन और उस युवा मन में सकारात्मक सोच और  गहरी समसामयिक पैठ है जो अपनी पैनी दृष्टि के साथ कविता में उपस्थित है। गंभीर रचनात्मक समझ और जीवन-जगत के प्रति कुछ नया करने की सृजनात्मक ललक दोनों नताशा के पास  है। जीवन की विपुलता और बहुलार्थता के साथ समकालीन सरोकरों से पूर्णतया अवगत इस कवि  की कविता एक अनूठा राग है जिसे वास्तविक स्थितियों द्वारा गाया जा रहा है । उस गान में एक साथ प्यार भी है और बगावत भी । विपरीत समय से दो-दो हाथ करने की इस रचनात्मक साहस का स्वागत अवश्य होना चाहिए !
          हो सकता है ये कवितायें आपके अंतर्मन को झकझोर नहीं सकतींआपके अंतस को चीथ नहीं सकती और आपके भीतर आग पैदा कर विद्रोह नहीं करा सकती पर एक क्षण के लिए आपको मौन कर सकती है और आपके संवेदन तंतु को अचानक तीव्रतर होने की स्थिति में ला सकती है  ! सार्थक और प्रभावशाली कविताओं की सभी विशेषताओं के साथ गढी इन कविताओं का स्वागत ।

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