Thursday, April 16, 2020

उजास भर देंगे पूरे आंंगन में

उजास भर देंगे पूरे आंंगन में

(ज्योति चावला की कविताएं)
                                                                                               अरुणाभ सौरभ
इस 21वीं सदी ने अपनी उपलब्धियों और सीमाओं का लगभग दो दशक पार कर लिया है।उल्लेखनीय है कि इसमे एक तरफ ऐसे युवाओं कि फौज है जो बहुराष्ट्रीय कंपनियों मे काम कर उनके उत्पादों का उपभोग,प्रसार को बढ़ावा दे रहे हैं।एक तरफ सिनेमा,विज्ञापन पर बाज़ार का पूरा प्रभाव रेखांकित किया जा सकता है।दूसरी तरफ अत्यल्प लेकिन गंभीर और लीक से हटकर सोचने वाले युवा भी सक्रिय हैं जिन्होंने अपनी रचनाशीलता को आधार बनाकर इस सदी की दहलीज़ पर कदम रखा है।ऐसे युवाओं के अंदर एक चिंतनशील सक्रिय युवा मन है जो अपनी अल्प संख्याँ के बावजूद साहित्य-संस्कृति मे अपनी सक्रियता बनाए हुए है। ज्योति चावला इसी सक्रिय युवा पीढ़ी की एक बहुचर्चित स्त्री-कवि है। हमारे दौर की स्त्री कविता की भरोसेमंद आवाज़ हैं-ज्योति । इनकी कविताओं का पहला संग्रह ‘माँ का जवान चेहरा’ साल 2013 में आधार प्रकाशन से आया था । हलांंकि इस किताब पर जितनी चर्चा होनी चाहिए हो नहीं पायीं । कारण जो भी रहा हो । कविताएँ पढ़ने के बाद इतना आश्वस्त करतीं हैं ।आज की हिन्दी युवा कविता की प्रमुख स्त्री कवि ज्योति चावला की कविताओं से गुजरना समकालीन हिन्दी कविता की धारदार दुनिया में कदम रखना है।ज्योति अंत्यन्त सहजता और धैर्य के साथ रचनाकर्म कर रही हैं।कहना ना होगा कि हमारे दौर में एक सैलेंट वर्कर कवि,जिनकी कविताएं बोलती हैं। एक जीवन,एक मौसम,एक राग,और कविताओं के निमित्त एक वायुमंडल के मिजाज़ को टोहना जहां जरूरी काम है। सहजता के साथ जीए हुए स्त्री जीवन का जीवनानुभव,संबंध ज्योति की कविताओं में उपस्थित है। वह भी पूरे नागर जीवन की स्त्रियॉं के सामाजिक यथार्थ के साथ।
इन कविताओं में जीवन में जीए हुए लय ,सुर ताल हैं ,तो खेल भी ,गति हैं तो विराम भी,उम्मीद है तो संघर्ष भी..कम सुखद नहीं है की यह युवा स्त्री कवि जीवन के हर खानों पर कविता बुनना जानती है,जिसमें गिनती के बाहर भी न जाने कितनी विखरी हुई और जानी-अनजानी दुनिया है, संवेदना है.व्यवस्थित जीवन की जगह यहाँ अनगढ़पन का सौंदर्य पूरी चेतना में शामिल है.इसीलिए ज्योति उन बहुत कम बचे हुए लोगों को अपनी कविता में शामिल करतीं हैं, जिनके पास यथार्थ के स्तर पर जीवटता और उम्मीद के स्तर पर रोशनी की आखिरी किरण तक जीवन जीने वाले लोगों की स्त्री कवि होने की पूरी सम्भावना को अपनी कविताओं में व्यक्त करतीं हैं..
....’’और आज जब मैं एक बच्ची की माँ हूँ
तो मुझे वे बीते दिन बेहद याद आते हैं
मेरी बच्ची के हिस्से में न तो घर की छत आई
न ही कोई मुंंडेर जिसके पीछे काकी रहती थी’’ (उसके सपने कहीं बेरंग तो नहीं’ शीर्षक कविता से)
संग्रह की पहली कविता है-‘माँ और आशा पारेख’ जिसमें एक स्त्री की जीए हुए जीवन का समूचा कोलाज है।जरा इन पंक्तियों पर करिए-
‘’उनकी आँखों के कोर पैने हो जाते हैं
ठीक आशा पारेख की बड़ी और कजरारी आँखों की तरह
और चेहरे पर उभर आती है वही लाज’’
यहाँ एक विशेष स्त्री का साधारण स्त्री से तुलना नहीं बल्कि एक जीवन का दूसरे जीवन के साथ तारतम्य दिखाया गया है।
इसीलिए भोगे हुए जीवन को कविताई का स्वरुप और गुणधर्म प्रदान करने की पूरी चेष्टा यहाँ दीखती है . मनुष्य और प्रकृति के बीच सार्थक अंतर्संबंध और पारिस्थितिक अनुकूलनता का विस्तार यहाँ है।कहीं-कहीं वैज्ञानिक दर्शन की क्लासिकल परिणति कविताओं में हुई है जिसकी फैंटेसी में हर तरह से जीवन के सौंदर्यबोध में डूब जाना सहज आकांक्षा बन जाती है..भावों की उतप्त गहराइयों में उतरने की कोई अतिरिक्त चेष्टा नहीं है ,बल्कि जटिल से जटिलतम परिस्थितियों में अपनी पक्षधरता तय कर लेना कवि की प्राथमिकता है.जिसके लिए छोटी से छोटी चीज़ें,आस-पास की बनती-बिगड़ती चीज़ें कविताई का हिस्सा बन जाती है।
‘’आज चवन्नी के बंद हो जाने की खबर से
टूट गया है बहुत कुछ
ऐसे जैसे एक साथ बहुत सी चवाननियाँ
झंझनाकर नीचे गिर गयी हों......(‘चवन्नी के बंद होने पर’ कविता से)
। यहाँ कविताएं भावुकता की रोमानी कल्पनाओं से नही,यथार्थ की सहज चेतना से गढ़ी जाती है । इसीलिए इस यथार्थ में शिल्प का अनगढ़पन मिलना स्वाभाविक भी है और क्रिया प्रसूत भी । इन सबके केंद्र में लड़की होने की तल्ख सच्चाईओं से कविता गढ़ने की पूरी कला ज्योति के पास है।उदाहरण के लिए संग्रह में कई कविताएं लड़की के या स्त्री जीवन के शीर्षक के इर्द-गिर्द घूमती है,जैसे-‘लड़की’,’प्यार में डूबी लड़की’,’माँ का जवान चेहरा’,कच्ची उम्र की लड़कियां’,’फिर भाग गयी लड़की’,समझदारों की दुनिया में माएं मूर्ख होती हैं’,छूना चाहती हैं आसमान’, सिनेतारिका’, राधिका के लिए’,’चूड़ियाँ’,’वह टिफिन वाली’,’तुम्हारी आँखें हमें सुकून देती हैं इरोम’,’पन्ना धाय तुम कैसी माँ थी’।इन सभी कविताओं में अलग-अलग स्त्री जीवन का कोना बारीकी से अभिव्यक्त हुआ है।पर हर तरफ के जीवन में सवालों का अंबार है।ये सवाल हमारे दौर की मौजू सच्चाई है जिससे ज्योति पूरी तरह वाकीफ़ है।
संग्रह की शीर्षक कविता ‘माँ का जवान चेहरा’ कई तरह के सवालों से एक साथ संवाद करती हुई कविता है,इस कविता में एक बच्ची का सरल-सहज प्रश्न और जिज्ञासा किस प्रकार जीवन की कठिन सच्चाई से जुड़ जाती है वह देखने लायक है।पर इनके सवाल उस सहज जिज्ञासा के उस स्वरूप तक हमें ले जातीं हैं जहां से जिम्मेदारियाँ ही मनुष्य को असमय वृद्ध कर देतीं हैं।कविता कहीं भी झटका ना देकर बहुत सहज ढंग से चुपचाप अपनी बात कह देती है।एक बच्ची जो कविता लिख सकती है आज युवा है,उसे अपने बचपन से जुड़ी सारी स्मृतियाँ एक-एक कर याद आती हैं पर माँ के जवान चेहरे की याद नहीं आती।क्योकि उसने माँ को कभी जवान देखा ही नहीं।
‘’माँ मुझे दिखीं हैं हमेशा वैसे ही
जैसे होती है माँ
सफ़ेद बाल और धुंधली आँखें
बच्चों की चिंता में डूबी ......’’
संग्रह की अधिकांश कविताओं में इसी तरह का सैलेंट-प्रोटेस्ट दीखता है,हालांकि इसे हमारे दौर की कविताओं की मूल प्रवित्तियाँ कहना एक तरह का सरलीकरण होगा।मौन विद्रोह को द्वंद और तनाव के साथ साध लेना और बिना आक्रामकता के अपनी बात को बहुत ही सहज ढंग से कह देना ज्योति की अपनी खासियत है।जिसको गढ़ने मे ये हमेशा सक्षम हुईं हैं।बिना लाउड हुए भी किस तरह से तनाव के विषय को बुना जा सकता है ये ज्योति बेहतर समझती है।उस समझ के धरातल से कविता का वितान खींचने में काफी सफल भी हुईं हैं।
कुल मिलाकर ज्योति युवापीढ़ी की उस सकारात्मक सोच और गहरी समसामयिक पैठ को अपनी पैनी दृष्टि के साथ कविता में लातीं हैं जिनमें गंभीर रचनात्मकता की पूरी समझ है,जीवन-जगत के प्रति जिनमे कुछ नया करने की ललक है.जीवन की ऐसी बहुलार्थता और समकालीन सरोकरों से पूर्णतया अवगत इस कवि की कविता एक अनूठा राग है जिसे स्थितियों द्वारा गाया जा रहा है.विपरीत समय से दो-दो हाथ करने की इस रचनात्मक हिम्मत का स्वागत अवश्य होना चाहिए.
कविताएं यहाँ आपके अंतर्मन को झकझोर नहीं सकतीं पर एक क्षण के लिए आपको मौन कर सकती है और आप अचानक संवेदन तंतु के तीव्रतर होने की स्थिति में आ सकते हैं ऐसी नायाब संवेदनात्मकता की धनी है हमारी ज्योति चावला......
संग्रह-माँ का जवान चेहरा-ज्योति चावला,आधार प्रकाशन पंचकूला हरियाणा.संस्कारण 2013 मूल्य-200/-रुपए

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