Wednesday, July 22, 2020

चीज़ों को देखने की ख़ास कलाकारी के बीच

चीज़ों को देखने की ख़ास कलाकारी के बीच


                                                                     -अरुणाभ सौरभ

वसंत सकरगाए ने लिखना बाद में शुरू किया पर देर से आए मगर दुरूस्त! अब तक उनके दो कविता-संग्रह प्रकाशित हैं।एक कविता-संग्रह 'निगहबानी में फूल' वर्ष 2011 में प्रकाशित हुआ था।एक और कविता-संग्रह 'पखेरू जानते हैं'2019 में प्रकाशित।'पखेरु जानते हैं' संग्रह में कुल 48 कविताएँ हैं।ये अलग-अलग मिज़ाज और तुर्शी की कविताएँ हैं।अलग विताध और अलग-अलग पहचान की कविताएँ हैं।कविताओंं की दुनिया एक साधारण इंसान की संवेदनशील दुनिया है।इसमें रहकर कवि की संवेदना अपने आसपास से लेकर दुनिया की हर चीज़ से जुड़ना चाहती है।इसी जुड़ाव से कवि की यात्रा बढ़ती है।इस यात्रा में चीज़ों को देखने की एक ख़ास कलाकारी कवि विकसित करता है।इसी तरह कवियन की भीड़ में वसंत का प्रवेश बिल्कुल अलग है।वसंत की कविताएँ पढ़कर लगता है कि प्रकृति, पर्यावरण, हमारे आसपास के वातावरण और जलवायु के प्रति हमारा कवि सचेत है और उसके रक्षार्थ प्रतिबद्ध भी।
                  'गमज़दा भीड़ से दूर
                  वे ही होते हैं तब हमारे अपने  के सच्चे हमराह
                  दूर तक जाते हैं विदा करने
                  पखेरू जानते हैं
                  जातीय धर्म निभाना'
 ये कविताएँ आम आदमी का रोज़नामचा है और रोज़मर्रा के संघर्ष की अभिव्यक्ति भी।कहीं व्यवस्था की जटिलताओं से लड़ता समय की विद्रूपता से लड़ता एक आम आदमी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है।कवि इक्कीसवीं सदी में कविता लिख रहा है,पर उसकी वैचारिक निर्मिति बीसवीं सदी में हो चुकी है।वैचारिक उग्रता कहीं नहीं दिखती।न कहीं कविता में कवि अपनी बात कहने के लिए आक्रमण की मुद्रा में आया है।कवि साफ़गोई और सचाई से जो समझता है,उसे दर्ज कर रहा है- अपनी कविता में।
                      भोपाल में कवि रहता है।इसलिए भोपाल शहर कई रुपों में यहाँ उपस्थित है।भोपाल की त्रासदी और भोपाल की प्राकृतिक छटा दोनों एक साथ उपस्थित है।इन कविताओं में लोहे की चमक-दमक को पहचानने की कला है।दूसरी तरफ 'चालीस पार स्त्रियों में लौटता वसंत' जैसी कविताएँ जिसमें कवि के भीतर का स्त्रीमन और स्त्रीमन में धँसे कवि को एक साथ पहचाना जा सकता है।हर अर्थ में वसंत सकरगाए साइलेंट प्रोटेस्ट के कवि हैं।बड़बोलापन, आक्रामक आत्ममुग्धता और हाहाकारी आक्रोश यहाँ नहीं दिखता है।सरल,सहज और आसान सी लगनेवाली भाषा में यह कवि कविता गढ़ता है।
                           कविताओंं के भीतर बारीकियाँ हैं। यही महीनी और बारीकियाँ कवि को अलहदा बनाती हैं।इसीलिए वसंत कविताओंं में महीनी और बारीकी के कवि हैं,जिनके पास सूत कातने की कला से कविता बुनने की कवायद है।जिनके पास दाम्पत्य की चादर में ढँका हुआ कवि मिज़ाज है जहाँ आवारा प्रेम नहीं पनप सकता।
                           संग्रह में व्यक्तिकेंद्रित कविताएँ ज़्यादा मुकम्मल बनी हैं। 'राजेश जोशी:तीन शब्द चित्र' जैसी कविता जिसमें एक कवि अपने अग्रज कवि के प्रति जो श्रृद्धा भाव रखता है उसका शब्द चित्र है।यहाँ राजेश जोशी का कवि रुप वसंत ने बिल्कुल अलग रुप में प्रस्तुत किया है।यह कविता राजेश जोशी की रोज़मर्रा और आदतों पर केंद्रित है।इससे बेहतर क्या लिखा जाता इस पर!
  'वे पहनते हैं टी-शर्ट
   गाहे-ब-गाहे कमीज़ 
   आधी  आस्तीनकी भी
    उन्हें मालूम है
    आलोचना के दाँवपेंच सभी
     वे रखते हैं अखाड़े को
     जेब में अपनी
     और साधे रहते हैं अक्सर
       एक समझदार चुप्पी
रविशंकर उपाध्याय बीएचयू में हम लोगों के बेहद आत्मीय मित्र और सीनियर रहे हैं।रविशंकर भाई का अकस्मात देहावसान हमारी पीढ़ी के लिए बहुत बड़ा आघात है।रविशंकर भाई को जब कवि अपनी कविता में उतारता है तो करुणा और शोक का विराट चित्र प्रस्तुत कर देता है।रविशंकर उपाध्याय न सिर्फ़ एक बेहतरीन कवि हैं बल्कि एक बेहद सुलझे हुए इंसान और संस्कृतिकर्मी रहे।उनके छाते से होकर गुजरते हुआ कवि दु:ख के पारावार में पहुँचता है। 

            वसंत की कविताओंं की दुनिया विविध रंगी है। जहाँ अपनी कविताओं में अपने आसपास की दुनिया से संवाद करता एक कवि है। जहाँ अपनी काव्य भाषा में कवि सामान्य धरातल से विशिष्ट धरातल पर जाने की चेष्टा करता है।जैसे संगीतकार किसी थाट में,बंदिशों में रियाज़ कर राग की पूर्णता ग्रहण करता है,उसी अर्थ में यहाँ कवि रियाज़ की मुद्रा में अर्थवत्ता तलाश रहा है।जीवन जीने की लालसा और उम्मीद को छोड़ना नहीं चाहता कवि!वह कवि जो नालकुंभियों का आर्तनाद सुन सकता है,मृगतृष्णा में उलझे जीवन का सार समझ सकता है,यादों का आस्वाद और ज़रूरत है।उस कवि की आँखों से प्रेम देखने की कोशिश है-'पखेरू जानते हैं'।वह उस नादान की प्रतिक्रिया है जो गुलों के साये में पले बहार को चीन्हता है। जनेऊ से लेकर अंडकोश तक इनकी कविताओंं में 
विषय के रुप में उपस्थित हुआ है।यह कवि बार-बार सिद्ध करता है कि वह कितना सचेत है,समर्थ.है और सजग भी।उम्मीद उसके पास है और हौसला भी-
                           'वह सुबह कब आएगी
                           आसमान में होंगे जब
                           सूरज-चाँद सितारे
                           साथ-साथ'    
                                      वसंत की कविता की सुंदरता जातीय अस्मिता से जुड़ाव के कारण हैं।उस जातीय अस्मिता में जातीयता का रंग बहुलता और बहुलार्थ तत्वों के साथ संयोजित हुआ है।इसी संयोजन में कविता में सम्प्रेषणीयता आयी है।इस जातीयता में हिन्दी-प्रदेश की क्षेत्रीय अस्मिता के रंग में रंगे हुए शब्द पँक्तियों के माध्यम से उतरते हैं।इससे संवाद की स्वभाविक प्रक्रिया निर्मित हुई है।हर युग की कविता अपने समय में और भाषा में उस युग का सर्वश्रेष्ठ चिंतन है।इस चिंतनधारा को सार्वकालिक और सार्वभौमिक बना देने की क्षमता कम कवियों के पास होती है।वसंत सकरगाए से फिर इस सर्वकालिक और सार्वभौमिक होने की उम्मीद क्यों?हाँ,इनकी कविताओंं के भीतर भाषा बहुलता और अर्थ बहुलता की संभावना पहचानने की अकुलाहट है।
                     बोध बहुलता और बहुलार्थ बोध के आधार पर कहें तो वसंत अपनी कविताओंं की निर्मिति की प्रक्रिया में इसका ख़याल रखते हैं।अपनी भावनाओं के प्रकटीकरण में स्पष्ट हैं।परिष्कृत बोध और संस्कार के लिए इनकी काव्यभाषा रियाज़ कर रही है।'मजदूर दम्पत्ति हैं-सूरज और धूप' कविता की संरचना सपाट है।मगर बातें इतनी गहरी कि नया बिम्ब विधान हमारी पठनीयता को नया दृष्टिकोण देता है।लोकजीवन के शब्द भी वसंत सकरगाए के यहाँ सहजता से आते हैं।
                       वसंत सकरगाए की दुनिया में कविता आम ज़िदगी में घुलीमिली आम ज़िन्दगी की कविता है। 'निगहबानी में फूल' कविता-संग्रह से 'पखेरु जानते हैं' तक आते-आते कविता की स्वभाविक यात्रा का विकास यहाँ दिखता है।कविता के भीतर के साधारण जन की पीड़ा और उसके आसपास के वातावरण और उसमें निर्मित होती दुनिया को बेहतर बनाने की कोशिश है-'पखेरू जानते हैं'।

                    -अरुणाभ सौरभ-
                  (असिस्टेंट प्रोफेसर)
                क्षेत्रीय शिक्षण संस्थान,
                एनसीईआरटी, श्यामला हिल्स 
                 भोपाल-462002
किताब़- पखेरू जानते हैं(कविता संग्रह)
कवि-वसंत सकरगाए
प्रकाशक-किताब़घर प्रकाशन नई दिल्ली
मूल्य-दो सौ अस्सी रुपये

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चीज़ों को देखने की ख़ास कलाकारी के बीच                                                                       -अरुणाभ सौरभ वसंत सकरगाए ने लिखना...