Friday, July 13, 2012


शहर भागलपुर के नाम एक कविता

अबकी इस शहर की
उन्ही गलियों मे घूमा
जहां कभी
आवारागर्दी का माजदा था
शर्वत और ठंढई के नशे मे घोला हुआ था गप्प
चौकों पर
पान गुमटी मे आबाद
किस्सों का संसार
वो नुक्कड़,घंटाघर
तिलकमांझी चौक
सुंदरपुर चौराहा
टी॰एन॰बी कॉलेज के
लड़के –लड़कियों की टोली
वो हंसी-ठहाके
बुजुर्गों की बातें,बीते जमाने की

आवारापन मे भागता हुआ5106162223622172313
शहर भागलपुर
जहां कभी आदमी और लंगूर
साथ-साथ भागते थे
तसर सिल्क की तरह
मुलायम था जहां प्यार

अब तातारपुर मे
इजलास मियां की जलेबी
रफ़फू मियां की चाय
मीठी नही लगती
परबत्ति चौक की झाल-मूढ़ी से
नमक-मिर्च गायब है

अब इस शहार मे
 बांग्ला के गीत,
मैथिली  की लोकधुनें
अंगदेस की लोककथाएं
सुनाई नहीं पड़ती
शरद्चंद्र फिर नही आए यहाँ
चन्द्रमुखी चेहरे की झुर्रियाँ और
जर्द होती देह संग
देव बाबू की याद लेकर
चली गाई पताल-लोक
जोगसर के कोठे पर
पसर गया बीरानापन
चंपानगर और नाथनगर मे
छा गया गर्द-गुब्बार
और उन्नीस सौ नाबासी ने
बची-खुची शहरों की उम्मीदों की कमर तोड़ दी

कुल मिलाकर
अब यह शहर नही
शहर के नाम पर
महज औपचारिकता है
किसी भागी हुई लड़की का
           पुराना पता है

चीज़ों को देखने की ख़ास कलाकारी के बीच

चीज़ों को देखने की ख़ास कलाकारी के बीच                                                                       -अरुणाभ सौरभ वसंत सकरगाए ने लिखना...