Monday, April 13, 2020

भारतीय संस्कृति और बहुभाषिकता की समझ


         भारतीय संस्कृति और बहुभाषिकता की समझ  
डॉ. अरुणाभ सौरभ
सहायक प्राध्यापक  DESSH,
एनसीईआरटी,क्षेत्रीय शिक्षा संस्थान भोपाल,
mobile :9871969360,
सांस्कृतिक बहुलता हमारी विरासत है, विविध भाषा हमारी पहचान ।  भारतीयता के संदर्भ में बहुलता एक व्यापक विशेषण है । वही बहुलता जो संस्कृति की बोधगम्य प्रणाली को सघन और संश्लिष्ट ना बनाकर उदारस्वरूपा बनाती है । भारतीय संस्कृति का निर्माण कई-कई लोकभाषाओं के संघटन से हुआ है तो शास्त्रीय भाषाओं के सम्मिश्रण से । इसमें क्षेत्रीयता और जातीय अस्मिता के विविध रंग समाहित होकर इसे बहुभाषी सम्प्रेषण से रंगीन करते हैं । भाषा बोध निर्माण का कार्य करती है । बोध की बहुलता या बोधि स्तर में बहुलता से राष्ट्रीयता का रंग और आस्वाद सुंदर,सापेक्ष और प्रभावी बनता है ।   
उद्देश्य
•       भारत और भारतीयता के मूल में बहुभाषी चेतना को समझने के अर्थ में
•       संवाद करने के लिए एक भाषा से दूसरे भाषा के बीच आवाजाही करने के अर्थ में
•       बहुभाषिकता और बहुसांस्कृतिकता हमारी विरासत के रूप में
•       बहुभाषिकता को शिक्षा में एक समाधान के रूप में देखने के अर्थ में । 
यहां आधुनिक भारत के दो महान विभुतियों को संदर्भित करना स्वाभाविक है‌‌‌ ‌-
सारी तालीम विद्यार्थियो की क्षेत्रीय भाषा (मातृभाषा) द्वारा दी जानी चाहिए
                                                                             -नयी तालीम(महात्मा गांधी)
शिक्षा में मातृभाषा शिशु के लिए मां के दूध के समान है जबतक मातृभाषा को शिक्षा का माध्यम नहीं बनाया जातातबतक शिक्षा का सार्वभौमीकरण संभव नहीं ! 
                                                                            -रवींद्रनाथ टैगोर 

भारतीय संस्कृति बहुलतावादी है। इस बहुलतावादी संस्कृति एक एक बड़ी विशेषता इसकी विविध भाषा है। विविध भाषाओं के बीच से जो तत्त्व प्रकाशित होता है – वही तत्त्व बहुभाषिकता है । बहुभाषिकता भारतीय संस्कृति का प्राण-तत्त्व है। मेल-जोल सद्भाव आदि से रहना हमारी मूल प्रेरणा है। बहुलार्थ तत्त्व हमारी सांस्कृतिक विरासत है। हमारा देश विविधताओं का देश है । बहुभाषिकता भारतीयता को बचाने में एक कारगर हथियार सिद्ध होगा। शिक्षा में बहुभाषिक पद्धति का निर्माण कर शिक्षा के सार्वभौमिक लक्ष्य तक पहुँचने में मदद करेगा । एक-एक बच्चे की मातृभाषा से प्यार करते हुए राष्ट्रीय चेतना के साथ जोडना ही बहुभाषिकता की ओर ले जाता है । बहुभाषिकता का शिक्षा में प्रयोग प्राथमिक स्तर से होना चाहिये । सामान्यतया  बहुभाषी का अर्थ ऐसे व्यक्ति से है जो दो या अधिक भाषाओं का प्रयोग करता है। विश्व में बहुभाषी लोगों की संख्या एकभाषियों की तुलना में बहुत अधिक है। विद्वानों का मत है कि द्विभाषिकता किसी भी व्यक्ति के ज्ञान एवं व्यक्तित्व के विकास के लिये बहुत उपयोगी है। समझ को बनाने में भाषा अस्त्र है और बहुभाषिकता शस्त्र   हम मूलतः बहुभाषी हैं। भारत जैसे बहुभाषी देश में तो हमारा किसी एक भाषा के सहारे काम चल ही नहीं सकता। हमें अपनी बात बाकी लोगों तक पहुंचाने के लिए और उनके साथ संवाद करने के लिए एक भाषा से दूसरे भाषा के बीच आवाजाही करनी ही पड़ती है। जैसे हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं का मिश्रित रूप है हिंदुस्तानी जुबान। । समाज यदि भाषा की निर्मिति में निर्णायक होता है तो भाषा भी समाज की निर्मिति में उतना ही सहायक होता है । स्वस्थ एवं सभ्य नागरिक का निर्माण भाषा के बगैर असम्भव है । भाषा व्यक्ति के व्यक्तित्व का निर्धारण ही नहीं करती अपितु उसे संस्कारवान भी बनाती है। व्यक्ति की समग्र प्रगति में निर्णायक तत्त्व भाषा ही होती है । भारत का समाज बहुभाषी है तो यहाँ व्यक्तित्व का निर्माण भी बहुभाषी ही होगा ।  बहुत से बच्चों की घर की भाषा (होम लैंग्वेज) स्कूल की भाषा से इतर होती है। बहुभाषिकता घर और स्कूल की भाषा में आयी दूरी को पाटता है । भारत और भारतीयता के  मूल में  छिपी हुई बहुभाषी चेतना को अर्थ देता है ।  सस्कृति का भाषा के साथ अभिन्न सम्बंध हैअगर भाषा संरक्षित रहेगी तो संस्कृति अपने आप बची रहेगी ! भाषा संस्कृति के निर्माण में सहायक होती हैभाषा द्वारा हम अपनी संस्कृति व्यक्त करते हैंभाषा स्वयं भी संस्कृति का महत्त्वपूर्ण अंग है…….संस्कृति सामाजिक और प्राकृतिक परिवेश पर विजय पाने का एक साधन है  उसमें मनुष्य के भाव,विचारसंस्कार,सम्वेदनाएं सभी शामिल हैं । भाषा भी ऐसी ही संस्कृति है .’’1
इस संदर्भ में ब्रिटिश कौंसिल का दस्तावेज कहता है-
‘’ India is a country with linguistic diversity that befits a continent. There is in place a three language formula for school education. However, in practice teachers are often faced with immense difficulty dealing with the challenges this diversity poses in everyday classroom situations. How do teachers deal with a multilingual class that does not match with his or her own language(s)? How does one transition students who speak a tribal or a highly localised language to the provincial language and then on to Hindi, the national language? And where does English sit within all of this, when is it right to introduce this and how? 2

बहुभाषिकता से जुडने का अर्थ भारत की आत्मा से जुडना है । हमारी राष्ट्रीय चेतना बहुभाषी है । दूसरे अर्थ में बहुभाषिकता हमारी राष्ट्रीय चेतना और मानस की निर्मिति में सहायक है । आज़ादी के बाद संविधान ही हमारा सबसे बडा ग्रंथ है , संविधान में बहुभाषिकता का पूरा खयाल किया गया है । जिसकी आठवीं अनुसूची भाषा पर ही है । आठ्वीं अनुसूची में 22 भाषाएं शामिल की गयीं हैं । त्रिभाषा सूत्र संविधान में नहीं है 1956 में अखिल भारतीय शिक्षा परिषद ने इसे मूल रूप में संस्तुति के रूप में मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में रखा था । 1968 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने इसका अनुमोदन किया । बच्चे प्रारम्भ से ही बहुभाषिक शिक्षा प्राप्त करे । त्रिभाषा फर्मूला को उसके मूल भाव के साथ  लागू किये जाने की जरूरत है। ताकि  बहुभाषी देश में बहुभाषी सम्वाद को बढावा मिले ।
प्रख्यात भाषा वैज्ञानिक रमाकांत अग्निहोत्री लिखते हैं-
‘’होबार्ट ‘द टयूटर,’ जो कि अँग्रेज़ी सिखाने के लिए तैयार की गई पहली प्रवेशिका थीके बारे में बताते हैं। इसका प्रकाशन 1779 ई. में बंगाल के सिरमपुर में हुआ था। यह मुख्यत: सहज एवं मनोरंजक दैनिक कार्य-कलापों से सम्बन्धित द्विभाषी वार्तालाप (संवाद) पर आधारित थाजिसमें पुराने तथा अलकृंत शब्दों की जगह साधारण बोलचाल वाले शब्दों का इस्तेमाल किया गया था। बहुत-से कारक थे जिन्होंने मिलकर विविधता को दरकिनार करते हुए एकभाषिता को स्वीकृत मानक बना दियाऔर ‘एकदम-सही के प्रति अस्वाभाविक लगाव’ सब तरफ चलन में आ गया। देशी भाषाओं को ‘वर्नेक्यूलर,’ जो केवल घरों एवं गौण परिवेश में बोलचाल के लिए ही उपयुक्त हैंकहकर उनको हेय करार देना ब्रिटिश सरकार के हित में था। वे पारम्परिक एवं सांस्कृतिक तथ्य व जानकारियाँजो इन भाषाओं द्वारा व्यक्त की जाती थींउन्हें भी गलत ठहरा दिया जाता था। उदाहरण के लिएभारत के परिप्रेक्ष्य मेंमैकॉलेके विचार थे कि अरबी एवं संस्कृत जैसी सांस्कृतिक भाषाओं को दी जाने वाली प्रशासनिक एवं वित्तीय सुविधाएँ समाप्त कर दी जाएँ तथा अँग्रेज़ी साहित्य एवं इतिहास को अनिवार्य विषय बनाने के साथ ही शिक्षा का माध्यम अँग्रेज़ी कर दिया जाए। मैकॉले का विचार था कि ऐसा करना ‘प्रशासन’ एवं ‘भारतीय जनता’ दोनों के हित में होगा। परन्तुवास्तव में वह इस माध्यम से भारतीय जनता के बीच एक ऐसा वर्ग तैयार करना चाहता थाजो लहू एवं रंग से तो भारतीय हो परन्तुपसन्दविचारबुद्धि एवं नैतिकता से ब्रिटिश हो। उसका मानना था कि ‘वर्नेक्यूलर’ भाषाओं का हित भी इन अँगरेज़ीदाँ भारतीयों द्वारा अच्छे से निभाया जा सकेगा।‘’3
                                   शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में निरंतर नवाचार और नए तकनीकों का उपयोग हो रहा है। तेजी से बदलती दुनिया में हम तकनीक कोनवाचार को दरकिनार नहीं कर सकते। तकनीक के सकारात्मक उपयोग की ओर ले जाना हमारा कर्त्तव्य होना चाहिये. बहुभाषिकता को एक शैक्षणिक तकनीक की तरह उपयोग करने की जरूरत है। भाषा सीखना किसी एक तकनीकएक नियम और एक शर्त से संभव नहीं है  भाषा शिक्षण निरंतर चलनेवाली गतिमान प्रक्रिया हैजो देश,काल,पात्र और परिस्थिति के अनुरूप ही सम्भव है। भाषा सीखने का सम्बंध अंतत: सुननाबोलनापढना और लिखना से है। विद्यार्थियों की भाषाई दक्षता के विकास हेतु भी उनकी मातृभाषा का सम्मान करते हुए भी एकरेखीय और एकभाषीय शिक्षण घातक हैइसकी जगह पर बहुभाषिक शिक्षण पद्धति की जरुरत है । इसीलिए अब राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 हो या राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 की ड्राफ्ट बहुभाषिकता का महत्त्व हर जगह रेखांकित किया गया है
एन सी एफ 2005 में लिखा है -
''बहुभाषिकता जो बच्चों की अस्मिता का निर्माण करती है और जो भारत के भाषा परिदृश्य का विशिष्ट लक्षण है उसका संसाधन के रूप में उपयोग कक्षा की कार्य नीति का हिस्सा बनाना तथा उससे लक्ष्य के रूप में रखना रचनात्मक भाषा शिक्षक का कार्य है।  यह केवल उपलब्ध संसाधन का बेहतर इस्तेमाल नहीं है बल्कि इसे यह भी सुनिश्चित हो सकता है कि बच्चा स्वीकार्य और संरक्षित महसूस करे और भाषिक पृष्ठभूमि के आधार पर किसी को पीछे ना छोड़ा जाए।‘’4
बहुभाषिकता से सबसे बडा लाभ यह होगा कि छोटी-छोटी भाषाएं, आदिवासी भाषाएं संरक्षित हो जाएगी और आनेवाली पीढी की अपनी भाषा संरक्षित हो जाएगी ।
'' मातृभाषा में शिक्षा से कक्षा में पढ़ाई को समृद्ध करने में सुविधा होगीशिक्षार्थियों की अधिकाधिक प्रतिभागिता होगी और बेहतर परिणाम निकलेंगे। इस उद्देश्य के लिए पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएं। सभी में मातृभाषा में शिक्षा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण सुनिश्चित किया जाए ताकि शिक्षार्थी वह माध्यम अपनाने में संकोच ना करें जिसमें वह आसानी से समझ सके।‘’5
भारतीय भाषाओं का आधार पत्र फोकस समूह के दस्तावेज़ के सार-संक्षेप में स्पष्ट है-
‘’बच्चे को मातृभाषा में ही शिक्षा प्रदान की जाए और शिक्षकों को कक्षा में बहुभाषी वातारण का महत्तम उपयोग कर सकने की क्षमता प्रदान की जाए . हाल ही में अध्ययन शोधों से बहुभाषिक भाषा-क्षमता व शैक्षिक सम्प्राप्ति में भी सकारात्मक संबंध का पता चला है . साथ ही यह भी पता चला है कि बहुभाषिकता ज्यादा संज्ञानात्मक लचीलेपन एवं सामजिक सहिष्णुता को जन्म देती है .’’6
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के ड्राफ्ट में भी इसपर प्रकाश दिया गया है-
‘’बच्चों में भाषा को सीखने की बेहद क्षमता होती हैयह भी सही है कि हमें अंग्रेज़ी की इस सत्ता को रोककर अभिजात वर्ग और बांकी के समाज में जो खाई बन गयी उसे पाटने की जरूरत है लेकिन इसके अतिरिक्त हमें भारतीय भाषाओं के शिक्षण के साथ-साथ अंग्रेज़ी का भी सभी सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों में बढिया क्वालिटी का शिक्षण करना चाहिये . ‘’ 7

                   शिक्षा का प्रमुख काम ही समझ का निर्माण करना है। समझ बनीविचार विकसित हुए और आप ज्ञान की मुख्यधारा में सीधे प्रवेश कर गए। समझना और बूझना यानि समझ-बूझ ही शिक्षा से प्राप्त मूल चीज़ है । समझ को बनाने की प्रक्रिया ज्ञानी होने के लिए आवश्यक है। जानने के लिए समझना जरूरी है । अपनी ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा जो हम  हम बाहरी दुनिया को जानने और समझने की जो कोशिश करते हैं। उसी कोशिश का नाम- संज्ञान है । संज्ञान का  सरलीकृत अर्थ है जानना । संज्ञान को महत्व देने वाले मनोवैज्ञानिकों ने संज्ञानवादी समूह बनाया था । मनोविज्ञान में संज्ञान का बड़ा महत्व है। संज्ञानात्मक शब्द का अंग्रेजी रूपांतरण है 'कॉगनेटिव'। जीन पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इसके अनुसार सीखना उस समय ज्यादा अर्थपूर्ण होता है जब वह विद्यार्थी की रुचि और जिज्ञासा के अनुरूप हो। जीन पियाजे मानते हैं संज्ञानात्मक विकास अनुकरण की बजाय खोज पर आधारित है। इसमें व्यक्ति अपनी ज्ञानेंद्रियों के प्रत्यक्ष अनुभव के आधार पर अपनी समझ का निर्माण करता है।
रमाकांत अग्निहोत्री लिखते हैं-
''आज के परिदृश्य मेंबहुभाषावाद ऐसी स्वाभाविक घटना मानी जाने लगी है जिसका सकारात्मक सम्बन्ध विवेकपूर्ण आचरण (संज्ञाना-त्मक व्यवहार) एवं विद्यालयों में प्राप्त सफलता से है। फिर भीइसमें छिपी अपार सम्भावनाओं का कक्षाओं में पूरी तरह से इस्तेमाल नहीं हो पाया है। इस बात से इन्कार नहीं किया जा सकता कि भाषा शोध बहुभाषावाद के महत्व को उजागर करती है। फिर भीकक्षाओं मेंखासकर भाषा की कक्षाओं में एकभाषावाद का प्रचलन अधिक देखने को मिलता है। बच्चे जो भाषा घर एवं अपने परिवेश में इस्तेमाल करते हैंवे विद्यालयों में उपेक्षित हैं एवं उनका प्रयोग विद्यालयों में हेय दृष्टि से देखा जाता है।''8
                           बहुभाषावाद आज एक  चुनौती है। यद्यपि मातृभाषा से लोगों का स्वाभाविक लगाव होता है। यही वजह रही कि बांग्लादेश और पाकिस्तान भाषा के नाम पर बंट गए। जबकि दोनों जगह एक ही धर्म के लोग बहुसंख्यक थे । इसके विपरीत  भारत में अनेक धर्म और भाषाएं हैं और हम संयुक्त हैं। यहाँ छोटी से छोटी भाषाओं का सम्मान आवश्यक है।  विश्व में बहुभाषी विद्यार्थी अपवाद नहीं बल्कि आदर्श हैं। एक से अधिक भाषा ज्ञान के संज्ञानात्मक और व्यावहारिक लाभ के कई शोध और प्रमाण हैं। एक से अधिक भाषा का ज्ञान अध्यापन और शिक्षण का अद्भुत साधन है। ध्यान रहे हम प्रथमत: और अंतत: भाषा ही सीखते हैं . प्रत्येक शिक्षक चाहे किसी भी विषय के हों उन्हें अपने सभी विद्यार्थियों के भाषा ज्ञान और कौशल की प्रशंसाप्रचार और उसे निखारने के अवसरों की तलाश करनी चाहिए। भाषा शिक्षक होने के नातेऐसा करना हमारी  पहली जवाबदेही है और नैतिकता भी ।


बहुभाषिकता के महत्त्व

•       भाषा की कक्षाओं में एकभाषावाद के प्रचलन को तोडने के अर्थ में
•       बच्चे के  घर एवं अपने परिवेश एवं विद्यालय की भाषा में सामंजस्य स्थापित करने में
•       अर्थपूर्ण और सृजनात्मक शिक्षा सामाजिक संघर्ष की कुंजी के रूप में 
•        भाषा सभी प्रकार की शैक्षणिक क्रियाओं का केन्द्र-बिन्दु के रूप में
•       अधिकतम ज्ञानभाषा के माध्यम से ही अर्जित करने के अर्थ में
•       भाषा संरचनाएँ सामाजिक विविधताओं एवं भाषा गहनता से विचारों की संरचना तथा उनकी अभिव्यक्ति की सीमाएँ तय करने के अर्थ में


दसवीं कक्षा तक के बच्चों को भाषाई समझ इतनी होनी चाहिए कि पढना,लिखना,बोलना,सुनना और सृजन में किसी तरह की कोई कठिनाई न हो
· समझ को विकसित करने हेतु भाषा सबसे बडा अस्त्र है . 
· भाषा और समझ का गहरा सम्बंध है . 
· शिक्षा में समझ की जरुरत को विकसित करने की नीतियां एक रचनात्मक सोच का परिणाम है .
· सम्वेदनात्मक विकास हेतु समझ के विकास की जरुरत है. 
· समझ विकसित होने से रचनात्मक्ता का विकास होगा 
· सीखने के प्रतिफल का वास्तविक लक्ष्य पूरा हो सकेगा 
· अधिगम प्रक्रिया पर सकारात्मक और संरचनात्मक और गहरा असर पड सकता है . 

भाषाई समझ के विस्तार हेतु बहुभाषिक शिक्षण पद्धति की आवश्यकता है । इससे भाषाई कौशल का विकास तो होगा ही साथ ही साथ शिक्षार्थी की अपनी भाषा का आदर और सम्मान भी बढ़ जाएगा । शिक्षा के मूल लक्ष्य तक पहुँचने में  भी आसानी होगी । कक्षा में बहुभाषिकता का उपयोग भाषा-शिक्षण के लिए संसाधन तथा लक्ष्यदोनों तौर पर किया जा सकता है. लेकिन इसका सीखने-सिखाने की प्रक्रिया में मातृभाषा के उपयोग पर भी पडता है । वह शिक्षकजो बहुभाषावाद को समाज में एक संसाधन के रूप में देखता हैवह नि:सन्देह रूप सेभाषा की कक्षा मेंविभिन्न भाषाओं में छिपी सृजनात्मकता की सम्भावनाओं के दोहन का अधिकतम प्रयास करेगा। लक्षित भाषा के सन्दर्भ मेंशुद्धता के साथ धाराप्रवाह वक्तव्य एवं सामाजिक व्यवहार में विशिष्ट कुशलता की प्राप्ति के प्रयास भाषा शिक्षण के प्रमुख उद्देश्य नहीं रहेंगे।

                     एक बहुभाषी कक्षा में शिक्षकों से यह अपेक्षा की जाती है कि उनमें  बच्चों के द्वारा बोली जाने वाली मातृभाषा के बारे में समझ और सम्मान की भावना का विकास करे,  वे बच्चों द्वारा बोली जाने वाली उनकी अपनी भाषा को कक्षा में समानुभूति के साथ सीखने-सिखाने के लिए स्थान देंअपनी कक्षा की विविधता को समझते हुए बच्चों के ज्ञान के विकास के लिए सहज और रचनात्मक वातावरण बनाने  का प्रयास करें।
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा 2005 के पृ सं 42 में गम्भीरतापूर्वक इसपर विचार किया गया है’’-
1.       भाषा शिक्षण बहुभाषिक होना चाहिए . बहुभाषिक कक्षा को एक संसाधन के तौर पर प्रयुक्त करना चाहिये .
2.       बच्चों की घरेलू भाषा(एं)स्कूल में शिक्षण का माध्यम होनी चहिए
3.       बच्चे प्रारम्भ से ही बहुभाषिक शिक्षा प्राप्त करें त्रिभाषा फर्मूला को उसके मूलभाव के साथ लागू किए जाने की जरूरत है ताकि वह बहुभाषी संवाद के माहौल को बढावा मिले
4.       गैर हिंदी भाषी राज्यों में बच्चे हिंदी सीखे तथा हिंदी प्रदेशों के बच्चे वह भाषा सीखे जो उस क्षेत्र में नहीं बोली जाती
5.       आधुनिकतम भारतीय भाषा के रूप में संस्कृत का अध्ययन भी शुरु किया जाना चाहिए
6.       बाद के स्तरों पर शास्त्रीय और विदेशी भाषाओं से परिचय करवाया जाना चाहिए  9
बच्चों की भाषा को कक्षा में सम्मान मिलेबच्चे बेहिचक किसी से अपनी बात कह सकेअपनी बात को अपनी भाषा में कहने के समान अवसर का सहज वातावरण प्रदान निर्मित हो । हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कोई भी बच्चा जब पहला दिन अपने विद्यालय में प्रवेश करता है तो वह अपने साथ अपनी भाषिक परम्परा और संस्कार लेकर आता है । उसी परंपरा और संस्कार का नाम- मातृभाषा है ।
              भारतीय भाषाओं का आधार पत्र फोकस समूह एन सी एफ-2005 में इस बात को लेकर स्पष्ट रुप से लिखा गया है-
'' मातृभाषा में शिक्षा से कक्षा में पढ़ाई को समृद्ध करने में सुविधा होगीशिक्षार्थियों की अधिकाधिक प्रतिभागिता होगी और बेहतर परिणाम निकलेंगे। इस उद्देश्य के लिए पर्याप्त सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएं। सभी में मातृभाषा में शिक्षा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण सुनिश्चित किया जाए ताकि शिक्षार्थी वह माध्यम अपनाने में संकोच ना करें जिसमें वह आसानी से समझ सके।''10
 एक भाषा का विकास दूसरी भाषा के विकास में भी सहायक होता है
एन.सी.एफ. 2005 में बहुभाषिकता
•       एक सृजनशील भाषा-शिक्षक द्वारा बहुभाषावाद का उपयोग एक संसाधन के रूप में  
•       कक्षा की शैक्षणिक योजना बनाने और लक्ष्य की प्राप्‍ति के लिए
•       एक सहज उपलब्ध साधन का श्रेष्ठ उपयोग करना 
•        प्रत्येक बच्चा अपने को कक्षा में सुरक्षित और स्वीकृत महसूस करे
•       भाषाई पृष्ठभूमि के कारण कोई भी पिछड़ने न पाए।
•       बच्चे प्रारम्भ से ही बहुभाषिक शिक्षा प्राप्त करे
•        त्रिभाषा फर्मूला को उसके मूल भाव के साथ  लागू किये जाने की जरूरत
•       बहुभाषी देश में बहुभाषी सम्वाद को बढावा मिले
•       मातृभाषा को माध्यम भाषा बनाने पर बल

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के ड्राफ्ट में बहुभाषिकता


•       शिक्षा में बहुभाषिकता को प्राथमिकता के साथ शामिल करने और ऐसे भाषा शिक्षकों की उपलब्धता को महत्व.
•       बच्चों के घर की भाषा समझते हों। यह समस्या राष्ट्रीय स्तर पर विभिन्न राज्यों में दिखाई देना
•       पहली से पाँचवी तक जहाँ तक संभव हो मातृभाषा का इस्तेमाल शिक्षण के माध्यम के रूप में
•       घर और स्कूल की भाषा अलग-अलग हैवहां दो भाषाओं के इस्तेमाल का सुझाव
•       बहुभाषिकता को समस्या के बजाय समाधान के रूप में देखना । 11

समझ को विकसित करने करने के लिए आज शिक्षण दोनों रूपों में संभव है -पहला मातृभाषा के रूप में  शिक्षणइसमें  संज्ञानात्मक विकास के साथ-साथ बालकों में मातृभाषा का विकास हो सके।  वैसे मातृभाषा में शिक्षा के लिए कोई अलग तकनीक तो होती नहीं अपितु बालकों के बौद्धिक विकासचिंतन और बोधन का आधार मातृभाषा बन सकती है । दूसरा माध्यम भाषा के रूप में जिसमें बच्चे ज्ञान के विविध क्षेत्रों को अपनी भाषा में समझ सके । अगर मातृभाषा में शिक्षण का माध्यम आरम्भिक स्तर तक बनाया जाता है तो उससे सीखने की गुणवत्ता भी बढेगी और सीखने की गति भी तेज होगी । हमारी बहुभाषिक अवधारणा में मदद मिल सकती है और बहुभाषिकता को आवश्यक आधार भी मिल सकता है । मातृभाषा के रूप में शिक्षण आवश्यक है ताकि इससे  बच्चों  को अपनी भाषा को लेकर कोई हीनताबोध ना हों और उसे समझने में आसानी हों ।
 समझ को विकसित करने के तरीके   
‘’समझ और भाषा का रिश्ता कुछ ऐसा होता है जैसे हवा और उसकी तरंगों काहमारी समझ अपनी भाषा में ही बनती है भाषा के बिना समझ की परिकल्पना असम्भव है पर स्कूलों में भाषा को एक ‘टूल’ की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है हमें इस दिशा में अभी काम करना होगा और यह विश्वास दिलाना होगा कि भाषा मानवीय समझ का एकमात्र आवश्यक आधार है हम वर्त्तमान में क्या कर रहे हैं ? इसके बारे में भी हमें भाषा ही सचेत करती है यह वर्त्तमान से अतीत और भविष्य में आवाजाही करने का एकमात्र जरूरी उपकरण है  ”12

कहानियों को सुनकर और वे जो भाषा सुनते हैंउसे दोहराकर। ऐसा करके वे भाषा के खण्डों– अभिव्यक्तिवाक्यांश और वाक्य को पढ़ते हैं और आत्मसात करते हैं।
बारी-बारी से हर अक्षर और शब्द को पढ़कर इससे वे अच्छी तरह जान जाते हैं कि शब्द कैसे बनते हैं और हर शब्द का मतलब क्या होता है।
पृष्ठ पर लिखे शब्दों को पढ़ने और समझने में उनकी मदद करने के लिए चित्रों का उपयोग करें। 
वास्तव में ज्यादातर छात्र इन सभी रणनीतियों के मिश्रण का उपयोग करते हैं।
मूक अभिनय के द्वारा प्रदर्शित संदेश को समझकर अभ्यास किया जाए . 
पढ़ना प्रारम्भ करने के लिए एक व्यावहारिक दृष्टिकोण एन.सी.एफ. 2005 से
•       कक्षा में संकेतचिह्नोंचार्टों और कार्यों की व्यवस्था सम्बन्धी सूचनाओं आदि को प्रदर्शित करके मुद्रित-सामग्री से भरपूर वातावरण प्रदान किए जाने की जरूरत
•       अक्षरों तथा ध्वनियों के पारस्परिक सम्बन्ध को सिखाने के अलावा लिखित चिन्हों को अक्षरों की तरह पहचानने की प्रक्रिया को प्रोत्साहन
•       कक्षा की पढ़ाई में ऐसी कल्पनाशील सामग्री का समावेश किए जाने की जरूरत 
•       किसी योग्य वाचक के द्वारा उपयुक्त भाव-भंगिमाओं सहित नाटकीय ढंग से पढ़ी जाए।
•       बच्चों से उनके अनुभवों को लिखवाना और फिर लिखे गए विवरण को पढ़वाना
•       कहानियोंकविताओं आदि का वाचन
•       पहली पीढ़ी के स्कूल जाने वालों को स्वयं अपनी पाठ्यसामग्री निर्मित करनेअपनी पसन्द से चुनी गई पाठ्यसामग्री को कक्षा में शामिल करने के अवसर देना 13

मातृभाषा हिन्दी शिक्षण पृष्ठ संख्या एनसीईआरटी के 1998 के संस्करण में लिखा गया है कि- 
'' विश्व के सभी शिक्षा शास्त्री तथा भाषा वैज्ञानिक इस बात से सहमत है कि शिक्षा का सर्वश्रेष्ठ माध्यम मातृभाषा ही हो सकती है। उनकी मान्यता है कि जितनी सरलता और स्वाभाविकता से मातृभाषा के माध्यम से बालक शिक्षा प्राप्त करता है किसी अन्य भाषा माध्यम से नहीं।''14

· विचार-बिनिमय में माध्यम की भाषा के रूप में समझ विकसित करने की आवश्यकता है ।
·  प्रशिक्षण में भाषाई समझ के रूप को विकसित करने की आवश्यकता है। 
· भाषाओं में समता के आधार पर समझ की  एकात्मता विकसित करने की आवश्यकता है । 
· सर्जनात्मक संवाद और लोक ज्ञान परंपरा के विकास में निकटता के कारण हिंदी भाषियों को सरलता और सुगमता से कई-कई भाषाओं में प्रवेश कराने हेतु बहुभाषी शिक्षण आवश्यक है। 
·  माध्यमिक स्तर तक अनिवार्य पढ़ाई मातृभाषा के रूप में और माध्यम भाषा के रूप में कक्षा 1 से 8 तक के रूप में पढ़ाई की व्यवस्था से भाषा समझ के विकास में बल मिल सकता है। 
· बुनियादी शिक्षा के रूप में प्राथमिक स्तर से माध्यमिक और उच्चतर माध्यमिक स्तर तक मातृभाषा की पढ़ाई से न सिर्फ़ भाषाई विकास होगा अपितु समझ का विकास से एक भाषाई राष्ट्रीय एकता को बल मिलेगा । 


गतिविधि 
बूझो तो जाने 
जगह और वस्तुओं के नाम लिए बिना उन्हें कैसे समझ कर बताया जा सकता है जैसे- बस स्टॉपपान की दूकानगली,सडक इनको बिना बोले समझाइए .

बच्चे की समझ और भाषा 
· समझ के आधार के रूप में भाषा 
· भाषा और सामाजिक समता
· बच्चे की अस्मिता का सवाल 15

राष्ट्रीय मूल्यांकन सर्वे की परीक्षा में पठन और अपठित गद्यांश पर आधारित प्रश्नों को करने में कमजोर पाए गए हैं . इसीलिए कम से कम पढना,लिखना,बोलना,सुनना और सृजन में छात्र-छात्राओं को  किसी तरह की कोई कठिनाई न हो . लगातार अध्यापकों को इन सभी बिंदुओं पर गम्भीरता से सोचने की जरुरत है . 

गतिविधि 2
 शिक्षक द्वारा पाठ्यपुस्तक की कोई कहानी का सारांश छात्रों को सुनाई जाए उसके बाद विद्यार्थियों से कहानी का संदेश समझकर बताने को कहा जाए . 

समझ बढाने के लिए अपने छात्रों की पठन रणनीतियों का अवलोकन करना
· अनुमान के आधार पर 
· याददाश्त आधार पर 
· पुर्वानुमान लगाने के लिए चित्रों का उपयोग कर
· शब्द के पहले पूर्वानुमान लगाकर 
· हर शब्द को अलग-अलग पढ्कर 
· पाठ के हिस्से को पढ्कर
· प्रत्येक शब्द की ओर संकेत 
· वाक्यों के नीचे उंगली घुमाकर 
अन्य के साथ आप छोटे समूहों में काम करने में सक्षम हो सकते हैं। अलग अलग रणनीतियों का उपयोग करने वाले पाठकों की जोड़ियाँ बनाने पर विचार करेंताकि आप देख सकें कि क्या वे एक दूसरे से सीख सकते हैं। पूरे स्कूली वर्ष के दौरान आपके छोटे छात्रों की पठन प्रगति के रिकॉर्ड विकसित करने के लिए सारणी की प्रतियों का उपयोग करें। साथ ही बहुभाषी समझ बनाने हेतु अलग-अलग बच्चों की मातृभाषा को कक्षा में बोलकर एक दूसरे से सीखने हेतु प्रेरित करना चाहिए ।

                    भारतीय भाषाओं पर छाए  घटाटोप और अंधकार काल में भाषाओं की एकात्मता पर विचार आवश्यक है ।इसी एकात्मता से बहुभाषिकता का मूल लक्ष्य प्राप्त किया जा सकता है । बहुभाषी शिक्षण व्यवस्था को और व्यापक एवं प्रभावी बनाने की जरूरत है । हलांकि इसका संदर्भ आरम्भिक स्तर पर शिक्षण देने से संदर्भित है, साथ ही उन भाषाओं के संरक्षण से है जिसके बोलने वालों की संख्या बहुत कम है खासकर आदिवासी भाषा आदि । परंतु इसकी सैद्धातिकी को विकसित अर्थ लेकर भाषाओं के बीच आंतरिक सूत्र की पड़ताल आवश्यक है।  भारतीय सभ्यता के पास अपनी भाषाओं की ताकत है जो उसे विशिष्ट बनाती है। भाषिक संरचना पर विचार करके भाषा के प्रति उदार दृष्टि रखकर भाषाओं की ताकत को समझने में आसानी होगी । जिस प्रकार भाषा का भूगोल होता है उस भूगोल की पड़ताल जरूरी है।  भाषाई संस्कृति के विकास को समझना जरूरी है। आज भाषा की जड़ता तोड़कर एकात्मता का सूत्र ग्रहण कर आगे बढ़ने की जरूरत है अन्यथा सारी भाषाओं के साथ हिंदी का भी नुकसान ही होगा । हिंदी का प्रचार-प्रसार छोटी-छोटी भाषाओं को समाप्त कर नहीं संभव है।  हिंदी को देश की संपर्क की सबसे बड़ी भाषा होने का गौरव कोई नहीं छीन सकता,छीन पाना असंभव है।  इसलिए हिंदी को सहजता के साथ आगे बढ़ने दीजिए। सभी भाषाओं के बीच हिंदी संवाद का व्यापक बन सकती है भाषा को आगे बढ़ाने की जरूरत है। 21 वीं सदी में सबसे बड़ा खतरा भाषाओं पर है। 



संदर्भ 
1 रामविलास शर्मा ‘भाषा और समाज’ पृ-406,ग्यारहवां संस्करण,2011 राजकमल प्रकाशनदिल्ली


4 एन सी एफ 2005 के पृष्ठ संख्या 41,एनसीईआरटी नई दिल्ली
भारतीय भाषाओं का आधार पत्र फोकस समूहएन सी एफ-2005 एनसीईआरटी नई दिल्ली
6 भारतीय भाषाओं का आधार पत्र फोकस समूह के दस्तावेज़ के सार-संक्षेप
7 राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2019 के ड्राफ्ट पृ 110
9 एन सी एफ 2005 के पृष्ठ संख्या 41,एनसीईआरटी नई दिल्ली
10 भारतीय भाषाओं का आधार पत्र ,फोकस समूहएन सी एफ-2005 एनसीईआरटी नई दिल्ली
12 समझ का माध्यमपृ-10, अक्तूबर 2010 एनसीईआरटी नई दिल्ली
13 मातृभाषा हिन्दी शिक्षण पृष्ठ संख्या 4 एनसीईआरटी के 1998 के संस्करण
14 एन सी एफ 2005 एनसीईआरटी नई दिल्ली
15 समझ का माध्यमअक्तूबर 2010 एनसीईआर्टटी 







       


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